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राजस्थान :- का इतिहास ( history of Rajasthan)

राजस्थान :- का इतिहास  ( history of Rajasthan)
History of Rajputana 
राजस्थान सामान्य ज्ञान


       • मेवाड़ राज्य का इतिहास •

1. वाड़ के प्राचीन नाम शिवि, प्राग्वाट, मेदपाट आदि रहे हैं । इस क्षेत्र पर पहले मेद अर्थात् मेर जाति का अधिकार रहने से इसका नाम मेदपाट (मेवाड़) पड़ा।

2. संसार के अन्य सभी राज्यों के राजवंशों से उदयपुर का राजवंश अधिक प्राचीन है। भगवान रामचंद्र के पुत्र कुश के वंशजों में से 566 ई. में मेवाड़ में गुहादित्य (गुहिल) नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने गुहिल वंश की नींव डाली। उदयपुर के राजवंश ने तब से लेकर राजस्थान के निर्माण तक इसी प्रदेश पर राज्य किया। इतने अधिक समय तक एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला संसार में एकमात्र यही राजवंश है |

           मेवाड़ के प्रमुख शासक व प्रमुख घटनाएँ  •
1. बापा रावल ( 734-753 ई.) :                                  महेन्द्र द्वितीय का पुत्र जिसका मूल नाम कालभोज था। बापा इसका विरुद था। बापा रावल ने हारीतऋषि के आशीर्वाद से सन् 734 में मौर्य राजा मान (मान मोरी) से चित्तौड़ दुर्ग जीता। इनके इष्टदेव एकलिंग जी व राजधानी नागदा थी। इनका देहान्त नागदा में हुआ व एक लिंग जी (कैलाशपुरी) के निकट समाधि स्थल है जो 'बापा रावल' के नाम से प्रसिद्ध है।

2. अल्लट (951 ई. - 953 ई.): अल्लट ने आहड़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया जो एक समृद्ध नगर व एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया।

3. जैत्रसिंह (1213 - 1253 ई.): प्रतापी व वीर शासक, जिसने इल्तुतमिश के आक्रमण के बाद मेवाड़ की राजधानी नागदा से चित्तौड़ को बनाया।

4. रावल रतनसिंह ( 1303 ई.): इनके शासनकाल की प्रमुख घटना 'चित्तौड़ का प्रथम शाका' थी। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर 1303 ई. में आक्रमण कर चित्तौड़ का किला फतह किया। मालिक मोहम्मद जायसी के 'पद्मावत' के अनुसार यह युद्ध रावल रत्नसिंह की अति सुन्दर महारानी पदमिनी के लिए हुआ । इस युद्ध में रानी पद्मिनी ने जौहर किया तथा गोरा व बादल वीर गति को प्राप्त हुए खिलजी ने चित्तौड़ का किला अपने पुत्र खिज्र खाँ को सौंपकर उसका नाम खिज्राबाद रख दिया। चित्तौड़ के प्रथम शाके में प्रसिद्ध इतिहासकार व कवि अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के साथ था।

 5. राणा हम्मीर ( 1326-1364 ई.): सन् 1326 में सिसोदिया शाखा के राणा अरिसिंह के पुत्र राणा हम्मीर ने चित्तौड़ में सिसोदिया वंश की नींव डाली। हम्मीर से ही मेवाड़ के शासक महाराणा कहलाने लगे। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में हम्मीर को 'विषम घाटी पंचानन' (विकटआक्रमणों में सिंह के सदृश) कहा है।

6. महाराणा लाखा  (1382-1421 ई.): इनके समय मगरा क्षेत्र के जावर में चाँदी की खान निकली। एक बनजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया । राणा लाखा का वृद्धावस्था में मंडौर के राव चूडा राठौड़ की पुत्री हंसाबाई (रणमल की बहिन) के साथ विवाह हुआ। राणा लाखा के बड़े पुत्र चूंडा ने मेवाड़ का राज्य हंसाबाई की होने वाली संतान को देने की भीष्म प्रतिज्ञा की। अत: लाखा की मृत्यु ( 1421 ई.) के बाद चूंडा ने हंसाबाई के पुत्र मोकल को राज्य सिंहासन पर बैठाया। रघुवंश में रामचन्द्र के बाद पितृभक्ति का ऐसा उदाहरण केवल
चूंडा ने ही प्रस्तुत किया।

7. महाराणा कुंभा ( 1433 - 1468 ई.): “हिन्दू सुरत्राण' और 'अभिनव भरताचार्य' के नाम से प्रसिद्ध ।              

  • सारंगपुर का युद्धः महाराणा कुंभा व मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के मध्य 1437 में हुआ युद्ध जिसमें विजय के उपलक्ष्य में अपने उपास्यदेव विष्णु के निमित्त महाराणा कुंभा ने 'विजय स्तम्भ' (कीर्तिस्तम्भ) का निर्माण करवाया। विजय स्तम्भ (कीर्तिस्तम्भ) का निर्माण 1440 में प्रारम्भ होकर 1448 ई. में पूर्ण हुआ। निर्माणकर्ता व सूत्रधार जैता और उसके पुत्र लापा, पोमा व पूंजा। विजय स्तम्भ में पत्थरों पर महाराणा कुंभा ने कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति खुदाई।प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि ( प्रारंभ करने के कुछ समय बाद मृत्यु) व कवि महेश थे। इसे 'भारतीय कला का विश्वकोष' कहा जाता है।

• कुभलगढ़ दुर्ग: कुंभा ने 1458 ई. में कुम्भ लगढ़ दुर्ग बनाया जिसका प्रमुख शिल्पी मंडन था। दुर्ग के भीतर बनाया गया कटारगढ़ (लघुदुर्ग) कुंभा का निवास स्थान था। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का रचयिता भी कवि महेश ही था।

• महाराणा कुंभा के काल में रणकपुर के जैन मंदिरों का निर्माण 1439 ई. में एक जैनष्ठि धरनक ने करवाया था जिसका शिल्पी देपाक था।


8. महाराणा साँगा ( 1509 - 1527 ):
• महाराणा रायमल के पुत्र महाराणा संग्रामसिंह ( राणा सांगा) का राज्याभिषेक 24 मई, 1509 को किया गया। अजमेर के कर्मचन्द पंवार ने साँगा की बचपन में रक्षा की थी।

• खातौली का युद्धः सन् 1517 में हाड़ौती की सीमा पर खातोली (कोटा) के युद्ध में राणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराया। खानवा का युद्धः खानवा का मैदान भरतपुर जिले की रूपवास तहसील में है।

• 17 मार्च, 1527 को राणा सांगा व मुगल शासक बाबर के मध्य खानवा का युद्ध जिसमें वावर विजयी हुआ।

•  बाबर की तुलुगमा युद्ध पद्धति राणा सांगा की हार का मुख्य कारण था। इस पराजय से भारतवर्ष में मुगलों का साम्राज्य स्थापित हो गया तथा बाबर स्थिर रूप से भारत वर्ष का बादशाह बना।

• कालपी के पास इरिच गाँव में इसके सरदारों द्वारा विष दे देने के कारण 30 जनवरी, 1528 को महाराणा सांगा का स्वर्गवास हुआ। उन्हें मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) लाया गया जहाँ उनकी समाधि है।

• राणा सांगा एकमात्र हिन्दू राजा था जिसके सेनापतित्व में खानवा के युद्ध में सब राजपूत जातियाँ विदेशियों को भारत से निकालने के लिए सम्मिलित हुई। ऐसा कोई अन्य राजा नहीं हुआ जो सारे राजपूताना की सेना का सेनापति बना हो।

9. महाराणा विक्रमादित्य : महाराणा सांगा के छोटे पुत्र जो 1531 ई. में मेवाड़ के राजा बने |
• गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने सन् 1533 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। महाराणा साँगा की हाड़ी रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगी लेकिन सहायता न मिलने पर कर्मवती ने सुल्तान से संधि की व सुल्तान 24 मार्च, 1533 को चित्तौड़ से लौट गया।

• चित्तौड़ का द्वितीय साकाः सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह व अल्पवय महाराणा विक्रमादित्य के मध्य हुआ युद्ध जिसमें देवलिया प्रतापगढ़ के वीर रावत बाघसिंह चित्तौड़ दुर्ग के पाड़नपोल दरवाजे के बाहर तथा राणा सज्जा व सिंहा हनुमानपोल के बाहर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। महाराणा लड़ाई में बहादुर शाह की विजय हुई।

• सन् 1534 में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में दासी पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य का सोते हुए वध कर दिया। बनवीर उदयसिंह को भी मारना चाहता था लेकिन स्वामीभक्त पन्नाधाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया। पन्नाधाय उदयसिंह को लेकर कुंभलगढ़ गई जहाँ के किलेदार आशा देवपुरा ने उन्हें अपने पास रखा।

10. महाराणा उदयसिंह ( 1537-1572 ई.):-            पालन पोषण कुंभलगढ़ दुर्ग में। 1537 ई. में कुंभलगढ़ में ही राज्याभिषेक |

• 1540 में उदयसिंह कुंभलगढ़ से ही प्रयाण कर बनवीर को हराकर चित्तौरवामी बने।

• 1559 ई. में उदयपुर शहर बसाया व उदय सागर का निर्माण प्रारम्भ करवाया जो 1565 में बनकर पूर्ण हुआ।

• चित्तौड़ का तृतीय शाका: 23 अक्टूबर, 1567 को अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण लिया गया। राणा उदयसिंह जयमल पटौड़, रावत पत्ता और अन्य प्रमुख सामन्तों पर किले की सुरक्षा का भार छोड़कर अपनी रानियों और परिवार के अन्य सदस्यों सहित निकटवर्ती पहाड़ों में सुरक्षित स्थान पर चले गए। वीर रावत पत्ता रामपोल के भीतर वीरगति को प्राप्त हुए। 25 फरवरी, 1568 को अकबर ने किले पर अधिकार कर लिया।

• महाराणा उदयसिंह का 28 फरवरी, 1572 ई. को गोगुन्दा में देहान्त हो गया जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।


11. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.): जन्मः 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में। महाराणा उदयसिंह ने पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था जबकि सबसे बड़े पुत्र व योग्य उत्तराधिकारी प्रताप थे, लेकिन सब सरदारों ने मिलकर प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में कर दिया। कुंभलगढ़ में उनके राज्याभिषेक का उत्सव हुआ।
• बादशाह अकबर ने सर्वप्रथम जलालखाँको नवम्बर, 1572 में, आमेर के राजकुमार मानसिंह कच्छवाहा को मार्च, 1573 ई. में, आमेर शासक भगवन्त दास (मानसिंह के पिता) को सितम्बर, 1573 में तथा अन्त में राजा टोडरमल को दिसम्बर, 1573 में महाराणा प्रताप के पास अपनी अधीनता स्वीकार कराने हेतु भेजा। लेकिन सभी प्रयत्न निष्फल रहे।

• हल्दीघाटी का युद्धः यह युद्ध सेनापति मानसिंह कच्छवाहा के नेतृत्व में अकबर की सेना व महाराणा प्रताप की सेना के मध्य हल्दीघाटी (राजसमंद) में 21 जून, 1576 को हुआ जिसमें अकबर की सेना विजयी हुई।

• कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ का थर्मोपोली व दिवेर को मेवाड़ का मेराथन कहा है। सन् 1582 में दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने चांवड को अपनी राजधानी बनाया। 19 जनवरी, 1597 को प्रताप का चावंड में देहान्त हुआ। चावंड से कुछ दूर बांडोली गांव के निकर महाराणा का अग्नि संस्कार हुआ जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है।

12. महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620); 19 जनवरी, 1597 ई. को चावंड में राज्याभिषेक।
• महाराणा अमरसिंह ने 5 फरवरी, 1615 को शाहजादा खुर्रम से संधि की। 19 फरवरी, 1615 को अमर सिंह के पुत्र कुँवर कर्णसिंह को लेकर शाहजादा खर्रम बादशाह जहाँगीर के दरबार में अजमेर पहुंचा।

• 26 जनवरी, 1620 को महाराणा अमरसिंह का देहान्त उदयपुर में हुआ और अन्येष्टि आहड़ में गंगोद्भव के निकट हुई।आहड़ महासतियों में सबसे पहली छतरी महाराणा अमरसिंह की है।

13. महाराणा राजसिंह (1652 - 1680 ई.): इन्होंने बादशाह औरंगजेब के जजिया कर का विरोध किया।
• सिहाड़ (वर्तमान नाथद्वारा) में श्रीनाथ जी की मूर्ति तथा कांकरोली में द्वारकाधीश की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई।

• राजसमंद झील का निर्माण व राजप्रशस्ति की रचना करवाई । राजप्रशस्ति भारत का सबसे बड़ा शिलालेख है।


14. महाराणा जगतसिंह द्वितीय ( 1734 ई.): हुरड़ा सम्मेलन: महाराणा जगतसिंह द्वितीय एवं जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने 17 जुलाई, 1734 को मेवाड़ के हुरडा नामक स्थान पर राजपूत राजाओं का सम्मेलन आयोजित कर एक शक्तिशाली मराठा विरोधी मंच बनाया | 

15. महाराणा भीमसिंह ( 1778 ई.): 1818 में महाराणा भीमसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर मेवाड़ को विदेशी शक्ति के अधीन किया। उदयपुर महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णाकुमारी के रिश्ते को लेकर जयपुर नरेश जगतसिंह व जोधपुर शासक मानसिंह के मध्य विवाद। कृष्णाकुमारी को जहर देकर विवाद समाप्त किया।

• महत्त्वपूर्ण तथ्य ( मेवाड़ का इतिहास) •
1. सूत्रधार मंडन ने देवमूर्ति प्रकरण( रूपमण्डन), प्रासादमंडन, राजवल्लभ, कोदंडमंडन, शाकुन मंडन, वास्तुशास्त्र, वैद्यर्मडन और वास्तुसार, मंडन के भाई नाथा ने वास्तुमंजरी और मंडन के पुत्र गोविन्द ने कलानिधि नामक पुस्तकों की रचना की।

2. बादशाह अकबर ने आगरा के किले के द्वार पर जयमल और पत्ता की हाथियों पर चढ़ी हुई मूर्तियाँ बनवाई।

3. डूंगरपुर महारावल आसकरण की पटरानी प्रेमल देवी ने डूंगरपुर में सन् 1586 में भव्य नौलखा बावड़ी का निर्माण करवाया।

           • मारवाड़ का इतिहास •

          • जोधपुर का राठौड़ वंश •
1. राव सीहाः राठौड़ वंश के संस्थापक व मूल पुरुष जो कन्नौज के शासक जयचन्द गहड़वाल के पौत्र थे। इन्होंने सर्वप्रथम पाली के उत्तर- पश्चिम में अपना राज्य स्थापित किया।

2. राव चूडा: राव चूंडा इस वंश का प्रथम प्रतापी शासक था। इसने मंडोर को अपनी राजधानी बनाया।

3. राव जोधा ( 1438-1489 ई.): 1453 ई. में मंडोर पर अधिकार किया। इन्होंने 1459 ई. में चिड़ियाट्रॅक पहाड़ी पर जोधपुर दुर्ग (मेहरानगढ़) का निर्माण कराया व जोधपुर शहर की स्थापना की।

4. राव मालदेव ( 1531-1562 ई.):                                     • पिता : राव गांगा। पत्नी : रानी उमादे (रूठी राणी- जैसलमेर के शासक रावल लूणकरण की पुत्री) जो अपने पति से रूठकर आजीवन तारागढ (अजमेर) में रही।

बीकानेर पर अधिकार : राव मालदेव ने 1541-42 में राव जैतसी को हराकर बीकानेर पर अधिकार किया था।

• गिरि सुमेल का युद्ध : जनवरी, 1544 ई. में दिल्ली के अफगान बादशाह शेरशाह सूरी व राव मालदेव के मध्य वर्तमान जैतारण (पाली) के निकट गिरी सुमेल स्थान पर हुआ युद्ध, जिसमें सूरी की बड़ी ही कठिन विजय हुई थी। तब सूरी ने कहा था कि 'मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैंने हिन्दुस्तान की बादशाहत खो दी होती।"

• जैता और कुंपा : राव मालदेव के सबसे विश्वस्त वीर सेनानायक जो गिरि सुमेल के युद्ध में मारे गए।

5. राव चन्द्रसेन ( 1562-1581 ई.): राव मालदेव के छठे पुत्र । राज्याभिषेक : 11 नवम्बर, 1562 ई. को। नागौर दरबार : अकबर द्वार नवम्बर, 1570 ई. में नागौर में आयोजित दरबार जिसमें अधिकतर राजपूत राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। राव चंद्रसेन नागौर दरबार में गए अवश्य लेकिन उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की एवं भाद्राजण चले गए। सारण के पर्वतों (सोजत) में सचियाप में जनवरी, 1581 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ। यहीं इनकी समाधि है। राव चंद्रसेन ऐसे अंतिम राठौड़ शासक थे जिन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की, बल्कि कष्टों का मार्ग अपनाया।

6. मोटाराजा राव उदयसिंह ( 1583-1595 ई.): राव चंद्रसेन के बड़े भ्राता जिन्हें अकबर ने 4 अगस्त, 1583 को जोधपुर का शासक बनाया। राव उदयसिंह जोधपुर के प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह शाहजादा सलीम से कर मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए।

7. महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638 - 1678 ) :
 पिता : महाराजा गजसिंह, राजतिलक : आगरा में।
• धरमत कायुद्ध  : मुगल बादशाह शाहजहाँ के पुत्रों - औरंगजेब व दाराशिकोह के मध्य उत्तराधिकार हेतु अप्रैल, 1658 में धरमत (उज्जैन, मध्यप्रदेश) में हुआ युद्ध जिसमें महाराजा जसवंतसिंह प्रथम ने दाराशिकोह की शाही सेना का नेतृत्व किया था। इस युद्ध में औरंगजेब विजयी हुआ था।

• मुहणोत नैणसी : महाराजा जसवंतसिंह के मंत्री एवं साहित्यकार जिनसे मतभेद हो जाने पर जसवंतसिंह ने उन्हें कारागार में डाल दिया था जहाँ उनकी मृत्यु हो गई थी। नैणसी ने 'नैणसी री ख्यात' तथा 'मारवाड़ रा परगना री विगत' नामक दो ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे।

• देहान्त : महाराजा जसवंतसिंह का देहान्त 28 नवम्बर, 1678 को जमरूद ( अफगानिस्तान) में हुआ। इनकी मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था, "आज कुफ्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया है।"

महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु के समय उनके कोई जीवित उत्तराधिकारी न होने के कारण औरंगजेब ने जोधपुर राज्य की
खालसा घोषित कर मुगल साम्राज्य में मिला दिया था।

8. महाराजा अजीतसिंह:
• जसवंतसिंह के पुत्र जिनका जन्म जसवन्तसिंह की मृत्यु के बाद 19 फरवरी, 1679 को लाहौर में हुआ।

• जोधपुर के राठौड़ सरदारों द्वारा बालक अजीतसिंह के जोधपुर का शासक बनाने की मांग करने पर औरंगजेब ने इसे टालते अजीतसिंह को परवरिश हेतु दिल्ली बुला लिया। वहाँ इन्हें रूपसिंह राठौड़ की हवेली में रखा गया।

• राठौड़ वीर दुर्गादास व अन्य सरदारों ने औरंगजेब की चालाकी को भांपकर बालक अजीतसिंह को बाघेली' नामक महिला की मदद से औरंगजेब के चंगुल से निकाल कर गुप्त रूप से सिरोही के कालिन्दी नामक स्थान पर जयदेव ब्राह्मण के घर भेज दिया तथा दिल्ली में एक अन्य बालक को नकली अजीतसिंह के रूप में रखा। बादशाह औरंगजेब ने बालक को असली अजीतसिंह समझते हुए उसका नाम मोहम्मदीराज रखा।

• मारवाड़ में भी अजीतसिंह को सुरक्षित न देखकर वीर राठौड़ दुर्गादास ने मेवाड़ में शरण ली। मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने अजीतसिंह के निर्वाह के लिए दुर्गादास को केलवा को जागीर-प्रदान की।

• महाराजा अजीतसिंह ने मुगल बादशाह फर्रुखसियर से संधि कर अपनी लड़की इन्द्रकुँवरी का विवाह बादशाह से कर दिया। 23 जून, 1724 को महाराजा अजीतसिंह की उनके छोटे बेटे बखतसिंह ने हत्या कर दी।


9. वीर दुर्गादास राठौड़ :-
• जन्म 13 अगस्त, 1638 को महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के मंत्री आसकरण के यहाँ मारवाड़ के सालवा गाँव में हुआ। महाराजा जसंवतसिंह के देहान्त के बाद राजकुमा अजीतसिंह की रक्षा व उन्हें जोधपुर का राज्य पुनः दिलाने में वीर दुर्गादास राठौड़ का महती योगदान रहा।

• राजस्थान के इतिहास में मेवाड़ की पन्नाधाय के पश्चात् दुर्गादास दूसरे व्यक्ति हैं जिनकी स्वामिभक्ति अनुकरणीय है। वीर दुर्गादास की मृत्यु उज्जैन में 22 नवम्बर, 1718 को हुई 

10. महाराजा मानसिंह (1803-1843 ई.):                         • ये गोरखनाथ सम्प्रदाय के गुरु आयस देवनाथ के शिष्य थे। आयस देवनाथ ने मानसिंह के जोधपुर का महाराजा बनने की भविष्यवाणी की थी।

• महामंदिर: मानसिंह ने जोधपुर में नाथ सम्प्रदाय के इस 'महामंदिर' का निर्माण करवाया।

• 16 जनवरी, 1818 को इन्होंने अंग्रेजों से आश्रित पार्थक्य (Subordinate alliance) की संधि की।

    • बीकानेर का राठौड़ वंश •

1. राव बीका (1465-1504 ई.):
• राव जोधा के पुत्र राव बीका ने 1465 ई. में जांगल प्रदेश जीतकर बीकानेर के राठौड़ राजवंश की स्थापना की।
• बीकानेर की स्थापना: 1488 ई. में इन्होंने बीकानेर शहर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।

2. राव जैतसी ( 1526-1542 ई.): बीकानेर राज्य का प्रतापी शासक एवं राव लूणकरण का पुत्र जिसने 1534 ई. में बाबर के पुत्र व लाहौर के शासक कामरान को हराया था। इस युद्ध का विस्तृत वर्णन वीतू सूजा कृत 'राव जैतसी रो छंद' में मिलता है।

3. राव कल्याणमल (1544-1574 ई.):
• राव जैतसी के पुत्र जिन्होंने गिरिसुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता की थी। इस युद्ध के बाद शेरशाह ने बीकानेर राज्य का शासन राव कल्याणमल को सौंपा।

• बीकानेर के पहले शासक जिन्होंने 1570 ई. के अकबर के नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार की तथा अपने छोटे पुत्र पृथ्वीराज को जो उच्च कोटि का कवि और विष्णु भक्त था, अकबर की सेवा में भेजा। इन्ही पृथ्वीराज ने 'वेलि किसन रूक्मणीरी' की रचना की।

4. महाराजा रायसिंह ( 1574-1612 ई.): जन्म: 20 जुलाई, 1541; पिता : राव कल्याणमल।
• नागौर दरबार के बाद 1572 ई. में अकबर ने इन्हें जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया।

• मुगलों के साथ घनिष्ठ संबंध। हिन्दू नरेशों में जयपुर के बाद बीकानेर से ही अकबर के अच्छे संबंध कायम हुए थे। 

• 1594 ई. में मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर किले (जूनागढ़) का निर्माण कराया जिसमें 'रायसिंह प्रशस्ति' उत्कीर्ण करवाई।

• महाराजा रायसिंह को मुंशी देवीप्रसाद द्वारा राजपूताने का कर्ण' की दी उपसा दी गई।

• 'रायसिंह महोत्सव' व 'ज्योतिष रत्नमाला' की भाषा टीका : महाराजा रायसिंह द्वारा लिखित रचनाएँ।

• 'कर्मचन्द्रवंशो कीर्तनकं काव्यं' : इस ग्रंध में महाराजा रायसिंह को 'राजेन्द्र' कहा गया है तथा लिखा है कि वह विजित शत्रुओं के साथ भी बड़े सम्मान का व्यवहार करते थे।

• महाराजा रायसिंह की मृत्यु सन् 1612 ई. में बुरहानपुर में हुई।

5. महाराजा कर्णसिंह ( 1631-1669 ई.): पिता सूरसिंह के देहावसान के बाद ये सन् 1631 में बीकानेर के सिंहासन पर बैठे। मुगल शासक औरंगजेब ने इन्हें 'जांगलधर बादशाह' की उपाधि दी ।

6. महाराजा अनूपसिंह ( 1669-1698 ई.): मणिराम,  अनंतभट्ट, भावभट्ट इनके दरबारी कवि थे। 

•  अनूप विधेक' 'काम प्रबोध' 'अनूपोदय' आदि संस्कृत ग्रंथ महाराजा अनूपसिंह ने स्वयं ने लिखे थे।

• इन्होंने दुर्लभ गंध एकत्रित कर बीकानेर अनूप पुस्तकालय की स्थापना की।

7.  महाराजा सूरतसिंह - ने मार्च 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी से सुरक्षा संधि अधीनस्थ सहयोग या आश्रित पार्थक्य की संधि (Subordinate alliance) की |

8. दयालदास की 'बीकानेर रा राठौड़ा री ख्यात' (दयालदास री ख्यात) में जोधपुर व बीकानेर के राठौड़ वंश का वर्णन है।

• आमेर के कछवाहों का इतिहास •

1. कछवाहा राजपूत स्वयं को भगवान रामचन्द्र के पुत्र कुश का वंशज मानते हैं।

2. कछवाहा वंश के नरवर के शासक सोढा सिंह के पुत्र दुलहराय ने सन् 1137 के लगभग रामगढ़ (ढूँढाड़) में मीणों को तथा बाद में दौसा के बड़गूजरों को हराकर कछवाहा वंश का राज्य स्थापित किया और रामगढ़ में अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनाया। इसी के पौत्र कोकिल देव ने सन् 1207 में आमेर के मीणाओं को परास्त कर आमेर को अपने राज्य में मिला लिया व उनसे अपनी राजधानी बनाया। तभी से आमेर जयपुर निर्माण तक कछवाहों की राजधानी बना रहा।

3. राजा भारमल (1547-1573 ई.);
• राजपूताने के पहले शासक जिन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर उससे वैवाहिक संबंध स्थापित किये।

• राजा भारमल ने 1562 ई. में मुगल सम्राट अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान अकबर की अधीनता स्वीकार कर उससे अपनी पुत्री की शादी की जो बेगम मरियम उज्जमानी के नाम से जानी गई। सलीम (जहाँगीर) इन्हीं के पुत्र थे।

4. राजा मानसिंह प्रथम (1589-1614); पिता : भगवन्तदास; जन्म : 2 दिसम्बर, 1550 को मौजमाबाद में।
• अकबर के सर्वाधिक विश्वासपात्र सेनानायक। 15 दिसम्बर, 1589 को आमेर के शासक बने।

• हल्दीघाटी के युद्ध में शाही सेना का नेतृत्व किया तथा विजयी रहे।

• राजा मानसिंह ने 1592 ई. में आमेर के महलों का निर्माण करवाया।

• देहान्त : 1614 ई. में अहमदनगर अभियान के दौरान एलिचपुर (इलचीपुर) में। अंतिम समय में इनके संबंध सम्राट जहाँगीर से अच्छे नहीं रहे।

5. मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.):
• शाहजहाँ ने इन्हें 1638 ई. में 'मिर्जा राजा' की पदवी से सम्मानित किया।

• इन्होंने तीन मुगल बादशाहों- जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब के साथ कार्य किया।

• बिहारी व रामकवि इनके आश्रित कवि थे। बिहारी ने बिहारी सतसई' तथा रामकवि ने 'जयसिंह-चरित्र' की रचना इन्हीं के समय में की।

• पुरन्दर की संधि : 11 जून, 1665 को पुरन्दर में शिवाजी व मिर्जा राजा जयसिंह के मध्य हुई संधि जिसके द्वारा शिवाजी ने औरंगजेब की अधीनता स्वीकार की।

• इन्होंने जयगढ़ दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया जो उत्तर मुगल कालीन राजपूत मुगल शैली का प्रतीक है।

6. सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743 ई.):
• सवाई जयसिंह ने 1727 ई. में वास्तुविद् पं. विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाल निवासी) की देखरेख में जयनगर (वर्तमान अधपुर) की स्थापना करवाई।

• सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी 'जीज मुहम्मदशाही' बनवाई और 'जयसिंह कारिका' नामक ज्योतिष मेश्य की प्रचना को ।

• सवाई जयसिंह ने जयपुर में एक बड़ी वेधशाला 'जन्तर मन्तर' का निर्माण करवाया नधा ऐसी ही खार और बेधशामा दिल्ली , उजौन , बनारस और मथुरा में बनवाई।

• इन्होंने जयपुर के चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) व जलमहल का निर्माण करवाय। 

• सवाई जयसिंह 1740 ई. में जयपुर में अश्वमेघ यज्ञ सम्पन्न कराने वाले अंतिम हिन्दू नरेश थे।

• इनकी सबसे बड़ी भूल बूंदी के उत्तराधिकार के झगड़े में पड़कर मराठों को राजस्थान में आमंत्रित करना था।

7. सवाई ईश्वरीसिंह ( 1743-1750 ई.);
• राजमहल ( टोंक) का युद्ध- मार्च, 1747 ई. में राजमहल (टोंक) नामक स्थान पर ईश्वरी सिंह का उनके भाई माधोसिंह, मराठा सेना व कोटा-बूंदी की संयुक्त सैना से हुआ युद्ध जिसमें ईश्वरीसिंह विजयी रहे। 

• ईसरलाट ( सरगासूली); राजमहल (टोंक) के युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में सवाई ईश्वरी सिंह द्वारा जयपुर में (त्रिपोलिया बाजार में) बनवाई गई एक अंची मीनार । सवाई ईश्वरीसिंह ने मराठों से तंग आकर आत्महत्या कर ली।

8. सवाई माधोसिंह प्रथम ( 1750-1768 ई.):
• 1763 ई. सवाई माधोसिंह ने रणथम्भौर दुर्ग के पास सवाई माधोपुर नगर बसाया।

• इन्होंने जयपुर में मोती डूंगरी पर महलों का निर्माण कराया।

9. सवाई प्रतापसिंह ( 1778-1803 ई.): ये 'बजनिधि' नाम से काव्य रचना करते थे। 1799 ई. में हवामहल का निर्माण। इन्होंने जयपुर में संगीत सम्मेलन करवाकर 'राधागोविन्द संगीत सार' की रचना करवाई जिसमें देवर्षि बृजपाल भट्ट का बहुत योगदान रहा।

10. सवाई जगतसिंह द्वितीय ( 1803-1818 ई.): सवाई प्रतापसिंह के पुत्र । जिन्होंने सन् 1818 में मराठों व पिंडारियों से राज्य की रक्षा करने हेतु जगतसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की।

11. महाराजा रामसिंह द्वितीय (1835-1880 ई.):
• महाराजा रामसिंह के नाबालिग होने के कारण मेजर जॉन लुडलो ने जयपुर का प्रशासन संभाला। उसने सती प्रथा, दास प्रथा, कन्या वध, दहेज प्रथा आदि पर रोक लगाने के आदेश प्रसारित किए।

• 1845 ई. में जयपुर में महाराजा कॉलेज की स्थापना हुई।

• 1870 में लॉर्ड मेयो तथा 1876 ई. में प्रिंस ऑफ वेल्स 'प्रिंस अल्बर्ट' ने जयपुर की यात्रा की। प्रिंस अल्बर्ट की यात्रा की स्मृति में जयपुर में अल्बर्ट हॉल ( म्यूजियम ) का शिलान्यास हुआ।

• महाराजा रामसिंह के काल में जयपुर को गुलाबी रंग प्रदान किया गया एवं जयपुर में रामनिवास बाग बनवाया गया।

12. महाराजा मानसिंह द्वितीय : 1922 ई. से स्वतंत्रता प्राप्ति तक जयपुर के शासक रहे । ये जयपुर के अंतिम महाराजा थे। 30 मार्च, 1949 की वृहत् राजस्थान के गठन के बाद इन्हें राज्य का प्रथम राजप्रमुख बनाया गया। इस पद पर इन्होंने 1 नवम्बर, 1956 को राज्यपाल की नियुक्ति तक कार्य किया।

                • चौहान वंश का इतिहास •
1. चौहानों की उत्पत्ति से संबंधित मत :

• 'अग्निकुंड' से उत्पत्ती    :-    पृथ्वीराज रासो, मुहणोत                                                  नैणसी व सूर्यमल्ल मिश्रण।
• सूर्यवंशी     :-     प. गौरीशंकर ओझा, पृथ्वीराज विजय,                               हम्मीर महाकाव्य |
• मध्य एशिया से आये हुए विदेशी    :-       कर्नल टॉड
• ब्राह्मण वंश से उत्पन्न      :-          डॉ. दशरथ शर्मा                                           ( बिजोलिया शिलालेख के आधार पर)

2. चौहानों का मूल स्थान - सांभर के पास सपादलक्ष क्षेत्र।

3. संस्थापकः सपादलक्ष के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव चौहान (551 ई.) था जिसने साँभर झील का निर्माण करवाया था।

             अजमेर के चौहान •
1.अजयपाल : वासुदेव चौहान का वंशज जिसने 7वीं शती में अजयमेरु दुर्ग की स्थापना की।

2. अजयराज :-
• इन्होंने 1113 ई. के लगभग ('पृथ्वीराज विजय' ग्रन्थ के अनुसार) अजमेर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।

• 'श्री अजयदेव' के नाम से चाँदी के सिक्के चलाये।

3. अर्णोराज (1133 ई.): इन्होंने तुर्क आक्रमणकारियों को पराजित कर अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया।

4. विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) (1158 ई.) :
• अजमेर के चौहान वंश का प्रतापी शासक जिसने राज्य की सीमा का अत्यधिक विस्तार किया।

• विद्वानों का आश्रय दाता होने के कारण 'कवि बान्धव' के नाम से लोकप्रिय।

• सोमदेव : दरबारी कवि एवं प्रकाण्ड विद्वान जिसने 'ललित विग्रह' नाटक की रचना की।

• 'हरिकेलि': स्वयं विग्रहराज चतुर्थ द्वारा लिखित नाटक।

• अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण कराया जिसे मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुदीन ऐबक ने ढाई दिन के झोपड़े में परिवर्तित किया।

• वर्तमान टोंक जिले के बीसलपुर गाँव में बीसलसागर तालाब का निर्माण कराया।

• इनका काल चौहान शासन का स्वर्ण युग कहलाता है।

5. पृथ्वीराज चौहान-तृतीय (1177 ई.)
अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक जिसने दिल्ली तक साम्राज्य का विस्तार कर लिया था।

• जन्म : संवत 1223 (सन् 1166 ई.) में अन्हिलपाटन (गुजरात) में। पिता : सोमेश्वर, माता : कपूरी देखो।

• मात्र 11 वर्ष की आयु में (1177 ई. में) अजमेर के शासक बने। प्रारंभ में माता कर्पूरी देवी ने शासन प्रबन्ध संभाला।

संयोगिता : कनौज के गहड़वाल शासक जयचन्द की पुत्री जिसे पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर से उठा लाये थे व अमर शाकर
विवाह किया था।

• पृथ्वीराज चौहान ने दलपुंगल की उपाधि धारण की।

• तराइन का प्रथम युद्ध : 1191 ई. में अजमेर व दिल्ली के चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय व मुहम्मद गौरी (सिंध-
पेशावर व लाहौर का शासक) के मध्य करनाल (हरियाणा) के पास तराइन के मैदान में हुआ युद्ध जिसमें मुहम्मद गौरी
पराजित हुआ।

• तराइन का द्वितीय युद्ध : पुतः 1192 ई. में पृथ्वीराज चौहान व मुहम्मद गौरी के मध्य हुआ युद्ध जिसमें पृथ्वीराज चौहान की बुरी तरह हार हुई। अजमेर व दिल्ली पर मुहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो गया।

• चन्दबरदाई, जयानक, जनार्दन, वागीश्वर आदि विद्वान पृथ्वीराज चौहान के दरबारी विद्वान थे।

            • रणथम्भौर के चौहान •

 1. हम्मीर देव चौहानः
• रणथम्भौर का सर्वाधिक प्रतापी व अंतिम चौहान शासक।

• हम्मीर ने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के विद्रोही सैनिक नेता मुहम्मद शाह को शरण दी जिससे नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। हम्मीर की पराजय हुई व दुर्ग पर खिलजी का कब्जा हो गया। इस युद्ध में अमीर खुसरो अलाउद्दीन के साथ था।                             

 • जालौर के सोनगरा चौहान •

1. जालौर में चौहान वंश का संस्थापक कीर्तिपाल चौहान था।

2. कान्हड़दे चौहान :                                                     • 1305 में जालौर के शासक बने।

• 1308 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया गया और उसने उसका नाम खैराबाद रख कमालुद्दीन गुर्ग को दुर्गरक्षक नियुक्त किया। वीर सातल और सोम वीर गति को प्राप्त हुए।

• 1311 में अलाउद्दीन ने जालोर दुर्ग पर आक्रमण किया। जालौर पर खिलजी का अधिकार हो गया तथा वीर कान्हड़देव सोनार और उसके पुत्र वीरमदेव युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हाए। इस युद्ध का वर्णन कषि पद्मनाभ द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ 'कान्हड़दे प्रबंध' तथा 'वीरमदेव सोनगरा री बात' मे मिलता है।

3.नाडॉल के चौहान :- संस्थापक शाकम्भरी नरेश वाकुपति का पुत्र लक्ष्मण चौहान था जिसने 950 ई. के लगभग चावड़ा राजपूतों के आधिपत्य से अपने आपको स्वतंत्र कर नाडौल में चौहान नेश का शासन स्थापित किया।
सिरोही के चौहान:
• 1311 ई. के लगभग चौहानों की देवड़ा शाखा के लुम्बा द्वारा स्थापना । इसकी राजधानी चन्द्रावती थी।

यहाँ के शासक सहसमल ने 1425 ई. के लगभग सिरोही नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।

• 1823 ई. में यहाँ के शासक शिवसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी में संधि की।

  • हाडौती के चौहानों का इतिहास •

• हाड़ौती क्षेत्र में महाभारत के समय से ही मीणा जाति निवास करती थी। मध्यकाल में यहाँ मीणा जाति का राज्य था।    

       • बूंदी राज्य का इतिहास •           

1. पूर्व में हाड़ौती का सम्पूर्ण क्षेत्र बूंदी राज्यान्तर्गत आता था।

2. बूंदी का यह नाम वहाँ के शासक बूंदा मीणा के नाम पर पड़ा।

3. 1342 ई. में हाड़ा चौहान देवा (नाडोल के चौहानों का वंशज) ने मीणों को पराजित कर चौहान वंश का शासन स्थापित किया। मेवाड़ नरेश क्षेत्रसिंह ने बूंदी को अपने अधीन कर लिया था।

4. 1569 ई. में यहाँ के शासक सुरजन सिंह हाड़ा ने अकबर से संधि कर मुगल आधीनता स्वीकार कर ली और तब से बूंदी मेवाड़ से मुक्त हो गया।

5. 1631 ई. में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बूंदी से कोटा को पृथक किया व नई कोटा रियासत बनाई।

6. मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने बूंदी राज्य का नाम फर्रुखाबाद रखा था।

7. राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी में हुआ, जब 1734 ई. में वहाँ की कछवाही रानी ने अपने पुत्र उम्मेदसिंह के पक्ष में होल्कर व राणौजी को आमंत्रित किया।

8. 1818 ई. में बूंदी के शासक विष्णुसिंह ने मराठों से सुरक्षा हेतु ईस्ट इंडिया कम्पनी से अधीनस्थ सहयोग संधि की।


 • कोटा राज्य का इतिहास •

1. प्रारम्भ में कोटा बूंदी राज्य का ही एक भाग था।

2. 1631 ई. में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कोटा को बूंदी से स्वतंत्र कर बूंदी के शासक रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह को कोटा का शासक बनाया। तभी से कोटा स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

3. कोटिया भील के नाम पर कोटा का यह नाम पड़ा।

4. झाला जालिमसिंह (1769-1823 ई.) कोटा का मुख्य प्रशासक एवं फौजदार था। वह बड़ा कूटनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक था। मराठों, अंग्रेजों व पिंडारियों से अच्छे सम्बन्ध होने के कारण कोटा इनसे बचा रहा। झाला जालिमसिंह ने सन् 1818 में अंग्रेजी शासन से कोटा रियासत की ओर से संधि की।

           • झालावाड़ रियासत •
1. कोटा के मुख्य प्रशासक झाला जालिम सिंह के पौत्र मदनसिंह के लिए कोटा राज्य का विभाजन कर 1838 ई. में पृथक झालावाड़ राज्य की स्थापना की गई। यह राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आखिरी रियासत थी। इसकी राजधानी झालरापाटन बनाई गई।

     • राजस्थान की अन्य रियासतें •

                • भरतपुर रियासत •
1. औरंगजेब की मृत्यु के बाद जाट सरदार चूड़ामन ने थून में किला बनाकर जाट वंश के शासन की स्थापना की।

2. चूडामन के बाद बदनसिंह को जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने डीग की जागीर दी और ब्रजराज' की उपाधि प्रदान की।

3. सूरजमल ने 1733 ई. में सोघर के निकट दुर्ग का निर्माण करवाया जो बाद में भरतपुर दुर्ग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

4. सूरजमल ने 1755-63 में डीग के महलों का निर्माण करवाया।

5. 1803 ई. में भरतपुर के शासक रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से अधीनस्थ सहयोग (आश्रित पार्थक्य की) संधि कर ली।

6. स्वतंत्रता के बाद भरतपुर रियासत का मत्स्य संघ में विलय हुआ।

             • अलवर रियासत •
1. 11वीं सदी में अलवर का क्षेत्र (मेवात) अजमेर के चौहानों के अधीन था। बाद में यह जयपुर राज्य का अंग बना।

2. 1744 ई. में कछवाहा सामंत प्रतापसिंह को मुगल बादशाह शाह आलम ने जयपुर से स्वतंत्र कर माचेड़ी की रियासत प्रदान की।

3. 1775 ई. में प्रतापसिंह ने भरतपुर राज्य से अलवर छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया।

4. 1803 ई. में राव राजा बख्तावर सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की।

5. अलवर महाराणा जयसिंह ने नरेन्द्र मंडल के सदस्य के रूप में 12 नवम्बर, 1930 को लंदन गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। नरेन्द्र मंडल' को यह नाम महाराजा जयसिंह ने ही दिया था। जयसिंह को उनकी सुधारवादी नीतियों के कारण अंग्रेजी सरकार ने 1933 में पद से हटाकर राज्य से ही निष्कासित कर दिया था।

                  • करौली रियासत •
1. करौली क्षेत्र में विजयपाल यादव द्वारा 1040 ई. में यादव वंश के शासन की स्थापना की गई।

2. 1348 में कल्याणपुर नगर बसाया जो अब करौली के नाम से जाना जाता है।

3. 1650 ई. में धर्मपाल द्वितीय ने करौली को अपनी राजधानी बनाया।

4. 1817 ई. में करौली नरेश ने ब्रिटिश सरकार से संधि की।
   

             • जैसलमेर रियासत •

1. जैसलमेर में चंद्रवंशी यादवों के वंशज भाटियों का शासन था।

2. भट्टी के पुत्र मंगलराव ने तन्नौट में भाटी वंश की दूसरी राजधानी (प्रथम राजधानी भट्टी ने 285 ई. में भटनेर, हनुमानगढ़ में स्थापित की थी) स्थापित की।

3. देवराज भाटो ने लोगवा को तन्नौट के स्थान पर अपनी नई राजधानी बनाया।

4. 1155-56 ई. में रावल जैसलदेव भाटी ने जैसलमेर दुर्ग का निर्माण करवाया तथा अपनी राजधानी जैसलमेर स्थानांतरित की।

5. 1878 में यहाँ के शासक मूलराज ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की।

6. यहाँ के अंतिम शासक जवाहरसिंह के काल में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा को अमानवीय यातनाएँ देकर जेल में मार डाला गया |

            • टोंक रियासत •
1. 9 नवम्बर, 1817 ई. को अंग्रेजी शासन ने टोंक की नई रियासत बनाई व अमीर खाँ पिंडारी को टोंक का नवाब बनाया। यह राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत थी।


 

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